पंजाबी और हिंदी साहित्य के प्रमुख सिख विद्वान पद्मश्री डा. रतन सिंह जग्गी की अंतिम अरदास व पाठ का भोग 1 जून को
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डा. जग्गी को पंजाबी और हिंदी साहित्य के प्रमुख सिख विद्वान के रूप में सदा स्मरण किया जाएगा
न्यूज पंजाब
पटियाला, 31 मई – पंजाबी और हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध सिख विद्वान पद्मश्री डा. रतन सिंह जग्गी, जो हाल ही में इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए, की अंतिम अरदास व पाठ का भोग 1 जून 2025 को पटियाला की माल रोड स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा (फव्वारा चौक के पास) में दोपहर 12 से 1 बजे तक किया जाएगा।
डा. रतन सिंह जग्गी का नाम पंजाबी व हिंदी साहित्य के अग्रणी विद्वानों और गुरमत तथा भक्तिकालीन परंपरा के विशेषज्ञों में शुमार किया जाता है। उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, साहित्य अकादमी ने राष्ट्रीय पुरस्कार, और पंजाब सरकार ने पंजाबी साहित्य शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा भी सम्मानित किया गया। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर ने उन्हें मानद डी.लिट. की उपाधि प्रदान की, और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ ने ज्ञान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया। भाषा विभाग पंजाब द्वारा उन्हें आठ बार प्रथम पुरस्कार मिला। साथ ही विभिन्न साहित्य अकादमियों, शैक्षणिक, साहित्यिक, धार्मिक संस्थाओं और सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों द्वारा भी उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए।
डा. जग्गी का जन्म 27 जुलाई 1927 को हुआ था। उन्होंने छह दशकों से भी अधिक समय तक अत्यंत निष्ठा और सहृदयता से मध्यकालीन साहित्य पर काम किया। वर्ष 1962 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से “दसम ग्रंथ का पौराणिक अध्ययन” विषय पर पीएच.डी. की। 1973 में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया से हिंदी में “श्री गुरु नानक: व्यक्तित्व, कृतित्व और चिंतन” विषय पर डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। वे 1987 में पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के पंजाबी साहित्य अध्ययन विभाग के प्रोफेसर एवं प्रमुख के रूप में सेवा निवृत्त हुए।
साहित्य के क्षेत्र में डा. जग्गी की प्रमुख कृतियों में दसम ग्रंथ का टीका (पांच खंडों में पंजाबी व हिंदी दोनों में), पंजाबी साहित्य संदर्भ कोश, पंजाबी साहित्य का स्रोत मूलक इतिहास, और गुरु ग्रंथ विश्वकोश का संकलन शामिल है। उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का आठ खंडों में विस्तृत टीका “भाव प्रबोधिनी टीका – श्री गुरु ग्रंथ साहिब” तैयार किया, जिसकी पाँच जिल्दों को हिंदी में भी प्रकाशित किया गया।
उन्होंने “सिख पंथ विश्वकोश” और “अर्थबोध श्री गुरु ग्रंथ साहिब” नामक रचनाएँ भी तैयार कीं। “गुरु नानक बाणी: पाठ और व्याख्या” को पंजाबी व हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया गया। “गुरु नानक: जीवनी और व्यक्तित्व” और “गुरु नानक की विचारधारा” भी उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने पवित्र ग्रंथ “तुलसी रामायण” (रामचरितमानस) का पंजाबी में लिप्यांतरण व अनुवाद भी किया।
डा. जग्गी का स्वर्गवास 22 मई को 98 वर्ष की आयु में कुछ समय की अस्वस्थता के पश्चात हुआ। वे अपने अंतिम समय तक साहित्य और शोध कार्यों को समर्पित रहे। वे अपने पीछे धर्मपत्नी डा. गुरशरण कौर जग्गी (सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज, पटियाला) और पुत्र मालविंदर सिंह जग्गी (सेवानिवृत्त आई.ए.एस.) को छोड़ गए हैं।